Monday, March 9, 2020

हिमालय ऊँचा या बछेंद्री पाल

*महिला दिवस पर विशेष: हिमालय ऊँचा या बछेंद्री पाल*

पल्लवी/मधेपुरा


"हताश लोगों से बस इतना सा सवाल, हिमालय ऊँचा या बछेंद्री पाल ?" कवि शैलेय की ये पंक्तियाँ अपने आप में बहुत कुछ कह जाती हैं।
अगर एक इंसान चाह ले तो क्या कुछ नही कर सकता। सफलता और असफलता के बीच बस थोड़ा सा ही फासला होता है,जो आगे बढ़ते हैं वो सफल होते हैं और जो हार मान लेते हैं वो वहीं के वहीं रह जाते हैं।

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की एक रचना रश्मिरथी की बहुत ही प्रसिद्ध पंक्तियाँ है "मानव जब जोर लगाता है,पत्थर पानी बन जाता है।"

ये सच है अगर इंसान चाह ले तो कितनी भी बड़ी मुसीबत हो तो उससे आगे निकलने की राह निकल ही आती है।
मेरी नजर में "सफल" सिर्फ वो नही हैं जिसने पढ़ लिखकर कोई नौकरी ले ली है,या कोई बड़ा काम कर लिया। बल्कि वो सब  सफल हैं जिसने तमाम कष्ट के बावजूद भी हार भी नही मानी और अपने परिवार को कभी किसी चीज की कमी न होने दी।
आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर मैं आपके सामने लाने वाली हूँ एक ऐसी ही संघर्ष की कहानी जिसने राह में आने वाली हर बाधाओं का सामना किया,और समाज के तानों की भी कोई परवाह नही की।

"विभा देवी" नाम है उस संघर्षशील महिला का जिन्होंने अपने पति के साथ कदम से कदम मिलाकर काम किया और अपने घर को अच्छे से चलाने के साथ ही अपने बच्चों को अच्छे स्कुल में पढ़ा भी रहीं हैं।
बचपन में हीं पिता का साया सर से उठ जाने के बाद वो अपनी माँ के साथ लोगों के घरों में काम करने लगी। माँ घरों में काम करने के साथ सब्जी भी बेचा करती थी। मासूम विभा की इच्छा बहुत थी पढ़ने की, लेकिन पढ़ाता कौन ? बस दस्तखत करना ही सीख पायी थी ।
अकेली विधवा माँ और विभा सहित पाँच भाई बहन के इतने बड़े परिवार को अच्छे से चलाना बहुत ही मुश्किल था इसलिए माँ ने कम उम्र में ही सभी बेटियों की शादी कर दी।
विभा मात्र 13 साल की थी जब उनकी शादी हुई। जिस उम्र में हम गुड्डे गुड़ियों से खेलते हैं उस उम्र में वो शादी के बंधन में बांध दी गयी। परिवार की बुरी हालत की वजह से बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत चाहकर भी नही हुई ।
लेकिन मन में जो ख़्वाहिशें थी, जो सपने थे, कुछ अच्छा करने की, आगे बढ़ने की वो अब भी कहीं न कहीं मौजूद थी और अपने उन सपनों को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की जिद ठान ली।
बिफोर प्रिंट से बात करते हुये विभा बताती हैं कि शादी के बाद भी मैं बहुत समय तक अपनी माँ के घर रही।

पति अजय यादव ठेला चलाते थे, जिससे उन्हें बहुत कम पैसे मिलते थे। विभा को लगा की अब अगर मैंने कुछ नही किया तो मेरी तरह मेरे बच्चों के सपने भी अधूरे रह जायेंगे।

बस अब विभा ने ठान लिया कि वो भी अपना काम करेंगी और जो पैसे मिलेंगे उनसे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाएंगी।
इन सब में उनका साथ उनके पति ने भी दिया और परिवार वालों ने भी,जो वास्तव में क़ाबिले तारीफ है।

कहा भी गया है कि,
"बेटी- बहु कभी माँ बनकर,
सब के हीं सुख दुःख को सहकर,
अपने सब फर्ज निभाती है,
तभी तो नारी कहलाती है।"

विभा, हर कदम पर सहयोग देने के लिए वो डॉक्टर तन्द्रा शरण का भी धन्यवाद देना नहीं भूलती हैं। विभा बताती हैं कि जब भी कोई परेशानी से घिरती हूँ,तन्द्रा दीदी हमेशा मेरे साथ होती हैं।
आज उनके तीनों बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे हैं। 2 बेटों के साथ अपनी बेटी को भी वो पढ़ाकर कुछ बनाना चाहती हैं। पढाई में अच्छा होने के कारण दूसरे बेटे राजा का नामांकन उन्होंने सहरसा के दिल्ली पब्लिक स्कूल में करवाया है।

ये मिसाल हैं सिर्फ महिलाओं के लिए नही बल्कि उन सभी लोगों के लिए जिन्हें ये लगता है कोई बड़ा काम ही करना है, छोटा काम करके हम आगे नही बढ़ सकते और अपने सपनों को पूरा नही कर सकते। काम कोई भी छोटा नही होता,बस इरादे नेक होने चाहिए।

विभा के जज्बे को हम सलाम है क्योंकि वो हताश और हारे हुए लोगों के लिए एक बहुत शानदार उदाहरण और हौसला हैं।

किसी ने सच ही कहा है कि,
"हजारों फूल चाहिए एक माला बनाने के लिए,हजारों दीपक चाहिए एक आरती सजाने के लिए,
हजारों बून्द चाहिए समुद्र बनाने के लिए, पर एक स्त्री अकेली ही काफी है,घर को स्वर्ग बनाने के लिए।।

हिमालय ऊँचा या बछेंद्री पाल

*महिला दिवस पर विशेष: हिमालय ऊँचा या बछेंद्री पाल* पल्लवी/मधेपुरा "हताश लोगों से बस इतना सा सवाल, हिमालय ऊँचा या बछेंद्री पाल ?...